लेख सार : प्रभु सब कुछ जानने वाले और सब कुछ करने में समर्थ हैं । इसलिए जीव को प्रभु की शरणागति लेकर चिंता रहित होकर जीवन व्यतीत करना चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु सर्वज्ञ हैं यानी सब कुछ जानने वाले हैं । प्रभु सर्वसामर्थ्यवान है यानी सब कुछ करने में समर्थ हैं । यह दो बातें अगर हमारे मन में दृढ़ता से बैठ जाती है तो हमारी सारी चिंताएँ तत्काल ही नष्ट हो जाएंगी ।
प्रभु सर्वज्ञ हैं यानी प्रभु को मेरी तकलीफ बताने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि प्रभु सब कुछ स्वतः ही जानते हैं । प्रभु सर्वसामर्थ्यवान हैं यानी सब कुछ करने में सक्षम हैं । प्रभु जब चाहे मेरी विपदा को चुटकी में मिटा सकते हैं । इन दोनों बातों को अपने मन में दृढ़ता से बैठा कर हम तत्काल अपनी चिंता से निजात पा सकते हैं ।
हमें चिंताएँ क्यों सताती है क्योंकि हमें यह विश्वास नहीं होता कि हमारी चिंता में कोई सहभागी है और हमारी चिंताओं के निवारण के लिए कोई समर्थ है । जब हमें लगता है कि हमारी चिंता में हमारा साथ देने वाला कोई नहीं है और हमारी चिंता के निवारण का सामर्थ्य किसी में नहीं है तो हमारी चिंता बढ़ती जाती है और हमें और अधिक निराश करती है ।
पर जब हम प्रभु की शरणागति लेते हैं और हमें पता होता है कि प्रभु सर्वज्ञ हैं, उनसे कुछ छुपा नहीं है, वे सब कुछ जानते हैं और वे सर्वसामर्थ्यवान हैं तो हमारी चिंताएँ तत्काल खत्म हो जाती हैं ।
प्रभु का सर्वज्ञ और सर्वसामर्थ्यवान होना हमें कितना सुकून प्रदान करता है, इस तथ्य को समझने की जरूरत है । प्रभु का सर्वज्ञ होना हमें विश्वास दिलाता है कि हमें प्रभु को कुछ बताने की जरूरत नहीं क्योंकि प्रभु सब कुछ जानते हैं । बताया उनको जाता है जो जानता नहीं । प्रभु सर्वज्ञ है इसलिए उन्हें बताने की कोई आवश्यकता नहीं है । दूसरी बात प्रभु सर्वसामर्थ्यवान हैं और सब कुछ करने में सक्षम हैं । संसार में कोई भी सर्वसामर्थ्यवान नहीं चाहे वह कोई भी हो । सर्वसामर्थ्यवान तो एकमात्र प्रभु ही हैं । ऐसा कुछ भी नहीं जो प्रभु नहीं कर सकते । घोर विपदा में फंसे व्यक्ति को जब सर्वसामर्थ्यवान प्रभु का चिंतन होता है तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसको भी विपदा से एकमात्र प्रभु ही मुक्ति प्रदान कर सकते हैं ।
इसलिए जीव को सर्वज्ञ और सर्वसामर्थ्यवान प्रभु से ही भक्ति के द्वारा रिश्ता जोड़ कर रखना चाहिए तभी वह सभी सांसारिक विपदाओं को बिना श्रम पार कर सकता है ।
राजा श्री परीक्षितजी ने इस बात का जीवंत उदाहरण देकर उल्लेख किया कि महाभारत के युद्ध में कौरवों के पास बड़े-बड़े महारथी योद्धा थे और पाण्डवों से भी बहुत बड़ी सेना थी । फिर भी प्रभु के कारण पाण्डवों ने महाभारत युद्ध की जीत को बिना श्रम वैसे ही अर्जित किया जैसे हम एक गौ-माता के बछड़े के पैर से बने गड्ढे को बिना श्रम पार करते हैं ।
प्रभु के अगणित सद्गुणों में यह दो गुण - सर्वज्ञ होना और सर्वसामर्थ्यवान होना अपने आप भक्तों को चिंता मुक्त करते हैं । चिंता वहाँ होती है जब हमें पता होता है कि हमारे दुःख को जानने वाला कोई नहीं और हमारे दुःख को मिटाने की शक्ति किसी में नहीं । पर जब प्रभु सब कुछ जानते हैं और सब कुछ करने में समर्थ हैं तो फिर चिंता की कोई बात ही नहीं रह जाती है ।