क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
649 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 32 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अहो, नंद आदि बृजवासी गोपों के धन्य भाग्य हैं । वास्तव में उनका अहोभाग्य है । क्योंकि परमानंद स्वरूप सनातन परिपूर्ण ब्रह्म आप उनके अपने सगे-संबंधी और सुहृद हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु श्री ब्रह्माजी कहते हैं कि श्री नंदजी एवं बृजवासी गोप गोपियों के वास्तव में सबसे धन्य भाग्य हैं क्योंकि उन्होंने प्रभु के साथ सगे संबंधी का रिश्ता कायम किया है । जो जीव प्रभु के साथ एक रिश्ता कायम करता है वही धन्य होता है । पर जीव प्रभु को भूलकर संसार के साथ रिश्ता कायम करता है और अंत में दुःख पाता है । प्रभु के साथ ही जीव का सनातन रिश्ता है इसलिए जीव तभी धन्य होता है जब वह प्रभु के साथ इस सनातन रिश्ते को पहचान कर किसी भी रूप में प्रभु से जुड़ जाता है । हम प्रभु से जो भी रिश्ता कायम करते हैं प्रभु उसे स्वीकार करते हैं और उसे निभाते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के साथ अपना रिश्ता कायम करे ।
प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2017 |
650 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जब उसका एक-एक इंद्रिय से पान करके हम धन्य-धन्य हो रहे हैं, तब समस्त इंद्रियों से उसका सेवन करने वाले बृजवासियों की तो बात ही क्या है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
अपनी समस्त इंद्रियों को प्रभु से जोड़ना सच्ची भक्ति है । बृजवासी अपनी समस्त इंद्रियों से अमृत से भी मीठा प्रभु के मधुर रस का पान करते हैं । बृजवासियों ने अपनी समस्त इंद्रियों को प्रभु से जोड़कर रखा था । प्रभु श्री ब्रह्माजी इस कारण बृजवासियों के भाग्य की सराहना करते हैं जिन्होंने अपनी समस्त इंद्रियों को प्रभु से जोड़ रखा है । जीवन का सच्चा परमानंद इसी में है कि हम अपनी समस्त इंद्रियों को प्रभु से जोड़कर रखें । जो परमानंद इसमें है वह संसार में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता ।
इसलिए जीव को चाहिए कि भक्ति के द्वारा अपनी समस्त इंद्रियों को प्रभु से जोड़कर रखने का प्रयास जीवन में करे ।
प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2017 |
651 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 34 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए उनके चरणों की धूलि मिलना आपके ही चरणों की धूलि मिलना है .... ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु श्री ब्रह्माजी श्रीबृज में किसी भी योनि में जन्म चाहते हैं । क्योंकि वहाँ जन्म मिलने पर प्रभु के किसी-न-किसी प्रेमी भक्त के चरणों की धूलि उड़कर उनके ऊपर गिर जाएगी । प्रभु श्री ब्रह्माजी कहते हैं कि प्रभु के प्रेमी भक्त की चरण धूलि मिलना प्रभु के श्रीकमलचरणों की धूलि मिलने के बराबर ही है क्योंकि प्रेमी भक्त के जीवन के एकमात्र सर्वस्व प्रभु ही होते हैं । इसलिए उनमें और प्रभु में कोई भेद नहीं होता । इस कथन से भक्ति और भक्त की महिमा का प्रतिपादन होता है । संसार में भक्त का स्थान कितना श्रेष्ठ है यह यहाँ देखने को मिलता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि जीवन में भक्ति का आलंबन लेकर अपना जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2017 |
652 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 35 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... फिर, जिन्होंने अपने घर, धन, स्वजन, प्रिय, शरीर, पुत्र, प्राण और मन, सब कुछ आपके ही चरणों में समर्पित कर दिया है, जिनका सब कुछ आपके ही लिए है, उन बृजवासियों को भी वही फल देकर आप कैसे उऋण हो सकते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
बृजवासियों ने अपना घर, धन, प्रियजन, शरीर, पुत्र, प्राण और मन सभी प्रभु के श्रीकमलचरणों में समर्पित कर दिया । उन्होंने अपना सर्वस्व प्रभु को अर्पण कर दिया । इन बृजवासियों को इनकी इस सेवा के बदले प्रभु ने भी स्वयं को उन्हें प्रदान कर दिया । प्रभु से बढ़कर और कोई फल नहीं है और प्रभु ने अपने स्वयं को ही अर्पण कर दिया फिर भी प्रभु उऋण नहीं हो सके । प्रेमाभक्ति का इतना बड़ा सामर्थ्य है कि स्वयं को फल के रूप में प्रदान करने के बाद भी प्रभु ने स्वयं को उऋण हुआ नहीं माना ।
प्रेमाभक्ति से प्रिय प्रभु को कुछ भी नहीं और प्रभु इसके बदले स्वयं को न्यौछावर कर देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2017 |
653 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 36 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
सच्चिदानंदस्वरूप श्यामसुंदर ! तभी तक राग, द्वेष आदि दोष चोरों के समान सर्वस्व अपहरण करते रहते हैं, तभी तक घर और उसके संबंधी कैद की तरह संबंध के बंधनों में बांधे रखते हैं और तभी तक मोह पैर की बेड़ियों की तरह जकड़े रखता है, जब तक जीव आपका नहीं हो जाता ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
तभी तक राग और द्वेष आदि दोष जीव से चिपके रहते हैं जब तक जीव प्रभु का नहीं बन जाता । जैसे ही जीव प्रभु का बन जाता है यह दोष स्वतः ही खत्म हो जाते हैं । तभी तक घर और संबंधी हमें अपने बंधन में रखते हैं जब तक हम प्रभु के नहीं हो जाते । प्रभु के होते ही वैराग्य हमारे मन में आ जाता है और संसार के बंधन हमें बांध नहीं सकते । तभी तक मोह हमें जकड़ कर रखता है जब तक हम प्रभु के नहीं हो जाते । जैसे ही हम प्रभु के बन जाते हैं हमारा मोहबंधन ध्वस्त हो जाता है ।
इसलिए जीव को भक्ति के द्वारा प्रभु का बन कर रहना चाहिए जिससे संसार के विकार उस पर असर नहीं डाल सके ।
प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2017 |
654 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 37 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रभो ! आप विश्व के बखेड़े से सर्वथा रहित हैं, फिर भी अपने शरणागत भक्तजनों को अनंत आनंद वितरण करने के लिए पृथ्वी में अवतार लेकर विश्व के समान ही लीला विलास का विस्तार करते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री ब्रह्माजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु संसार के झंझटों से सर्वथा रहित हैं । संसार के गुण-दोष प्रभु पर प्रभाव नहीं डाल सकते । फिर भी प्रभु अपने शरणागत भक्तजनों को आनंद प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेते हैं । अवतार काल में प्रभु अपने श्रीलीला विलास का विस्तार करते हैं जिससे इसके श्रवण, कथन और चिंतन से भक्तों का कल्याण हो सके । प्रभु द्वारा श्रीलीला करने का प्रयोजन ही भक्तों को आनंद प्रदान करना है और भक्तों का उद्धार करना है । प्रभु की श्रीलीला भक्तों को अनंत आनंद प्रदान करती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीला का श्रवण और चिंतन करे जिससे वह आनंद प्राप्त कर सके और उसका उद्धार भी हो जाए ।
प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2017 |
655 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 14
श्लो 58 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिन्होंने पुण्यकीर्ति मुकुंद मुरारी के पदपल्लव की नौका का आश्रय लिया है, जो कि सत्पुरुषों का सर्वस्व है, उनके लिए यह भव-सागर बछड़े के खुर के गड्ढे के समान है । उन्हें परमपद की प्राप्ति हो जाती है और उनके लिए विपत्तियों का निवास स्थान यह संसार नहीं रहता ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जिन्होंने पुण्यकीर्ति प्रभु के श्रीकमलचरणों का आश्रय लिया है उनके लिए भवसागर पार करना वैसे ही सुलभ हो जाता है जैसे कि हमारे लिए बछड़े के पैरों से बने गड्ढे को पार करना सुलभ होता है । बछड़े के चलने से उसके पैरों से बना गड्ढा कितना छोटा होता है और उसे हम बिना श्रम के सहज ही पार कर लेते हैं । वैसे ही प्रभु के श्रीकमलचरणों का आश्रय लेने वाला जीव भवसागर को बिना श्रम के पार कर लेता है । उस जीव को परमपद की प्राप्ति होती है । उसके लिए विपत्तियों से भरा यह दुःखालय संसार आनंद प्रदान करने वाला बन जाता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु के श्रीकमलचरणों का आश्रय जीवन में ले ।
प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2017 |
656 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 15
श्लो 41 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्यों न हो, भगवान की लीलाओं का श्रवण कीर्तन ही सबसे बढ़कर पवित्र जो है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का श्रवण, चिंतन और कीर्तन से बढ़कर पवित्र करने वाला अन्य कोई साधन नहीं है ।
गोपियां और गोप श्रीबृज में प्रभु की श्रीलीलाओं का कीर्तन करते थे । ग्वाल बालक प्रभु के पीछे-पीछे चलते हुए प्रभु की श्रीलीलाओं को याद कर प्रभु की स्तुति करते हुए चलते थे । संसार में हमें पवित्र करने का श्रेष्ठतम साधन प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का श्रवण, चिंतन और कीर्तन है । संतजन और भक्तजन नित्य प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का श्रवण करते हैं, प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का चिंतन करते हैं और प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का कीर्तन करते हैं । प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का श्रवण, चिंतन और कीर्तन हमें पवित्र तो करता ही है साथ ही हमें दिव्य परमानंद भी प्रदान करता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीला एवं कथा का श्रवण, चिंतन और कीर्तन जीवन में करे ।
प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2017 |
657 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 15
श्लो 43 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
गोपियों ने अपने नेत्र रूप भ्रमरों से भगवान के मुखारविंद का मकरंद-रस पान करके दिन भर के विरह की जलन शांत की । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब प्रभु गौचारण के बाद संध्या के समय वापस लौटते तो प्रभु बंसी बजाते हुए आते । बंसी की ध्वनि सुनते ही बहुत सारी गोपियां प्रभु के दर्शन के लिए अपने घरों से बाहर निकल आती । उनकी आँखें न जाने कब से प्रभु के दर्शन के लिए तरस रही होती थी ।
गोपियां अपने नेत्रों से प्रभु के रूप का दर्शन करतीं और दिनभर की विरह को शांत करतीं । वे प्रभु की मनोहर झांकी का साक्षात दर्शन करतीं । प्रभु के शीश पर मोरपंख का मुकुट होता, बालों में सुंदर-सुंदर पुष्प गुंथे हुए होते । प्रभु के श्रीनेत्र और प्रभु की मुस्कान मधुर और मनोहर होती । गोपियां अपने नेत्रों को सफल करने के लिए बार-बार प्रभु के दर्शन करतीं ।
जीव को भी अपने नेत्रों को सफल करने के लिए प्रभु के विग्रह का दर्शन करना चाहिए और भक्ति के द्वारा प्रभु की झांकी का अपने अंतःकरण में दर्शन करने की पात्रता पाने का प्रयास करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2017 |
658 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 15
श्लो 50 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
उन्हें ऐसी अवस्था में देखकर योगेश्वरों के भी ईश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अमृत बरसाने वाली दृष्टि से उन्हें जीवित कर दिया । उनके स्वामी और सर्वस्व तो एकमात्र श्रीकृष्ण ही थे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - एक दिन प्रभु ग्वाल बालकों के साथ भगवती यमुना माता के तट पर गए । श्री यमुनाजी में कालिया नाग रहता था जिस कारण जल विषैला था । गौ-माताओं ने और ग्वाल बालकों ने प्यास के कारण विषैला जल पी लिया । विषैला जल पीते ही गौएं और ग्वाल बालक प्राणहीन हो गए ।
वे प्रभु को अपना स्वामी और सर्वस्व मानते थे और प्रभु पर अटूट विश्वास करते थे । विपत्ति के समय उन्हें प्रभु पर ही भरोसा होता था । इसलिए ऐसी प्राणहीन अवस्था में उन्हें देखकर प्रभु ने अपनी अमृत बरसाने वाली दृष्टि से उन्हें देखा और वे जीवित हो उठे ।
जब हम प्रभु को अपना सर्वस्व मानते हैं और प्रभु पर अटूट विश्वास करते हैं तो प्रभु हर विपत्ति में हमारी रक्षा करते हैं । प्रभु की शरण में रहने वाले जीव का पूरा दायित्व प्रभु उठाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2017 |
659 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 10 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि उन्होंने अपने शरीर, सुहृद, धन-संपत्ति, स्त्री, पुत्र, भोग और कामनाएं, सब कुछ भगवान श्रीकृष्ण को ही समर्पित कर रखा था ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - कल्पना में भी प्रभु की पीड़ा भक्त से सहन नहीं होती इसका दृष्टांत यहाँ देखने को मिलता है ।
जब प्रभु कालिया के विष से श्री यमुनाजी को स्वच्छ करने के लिए श्री यमुनाजी में कूद पड़े तो कालिया नाग चिढ़कर प्रभु के सामने आ गया । उसने प्रभु को अपने बंधन में जकड़ लिया और श्रीलीला करते हुए प्रभु बंध गए । यह देखते ही तट पर खड़े ग्वाल बालक दुःख और भय से मूर्छित हो गए । ग्वाल बालकों ने अपना सर्वस्व प्रभु को समर्पित करके रखा था इसलिए प्रभु की पीड़ा को देखकर वे मूर्छित हो गए ।
भक्त प्रभु से इतना प्रेम करता है कि कल्पना में भी प्रभु की पीड़ा को सहन नहीं कर सकता ।
प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2017 |
660 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वे मन में ऐसी बात आते ही अत्यंत दीन हो गए और अपने प्यारे कन्हैया को देखने की उत्कट लालसा से घर द्वार छोड़कर निकल पड़े ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - बृजवासी प्रभु से कितना प्रेम करते थे यह यहाँ देखने को मिलता है ।
जब कालिया नाग ने प्रभु को बंधन में जकड़ लिया और प्रभु श्रीलीला करते हुए बंध गए तो श्रीबृज में अपशकुन होने लगे । श्री नंदजी और गोप गोपियों ने जब यह अपशकुन देखा और पता चला कि प्रभु वहाँ नहीं हैं और गौचारण के लिए गए हुए हैं तो वे सब भय से व्याकुल हो उठे । कोई अशुभ घटना प्रभु के साथ घटने के भय से वे दुःख, शोक और भय से आतुर हो गए । वे मन में ऐसी बात आते ही बड़े दीन हो गए और अपने प्यारे प्रभु को सकुशल देखने की लालसा से अपने घर द्वार छोड़कर प्रभु को खोजने के लिए निकल पड़े ।
बृजवासी प्रभु से अत्यंत प्रेम करते थे और सदैव प्रभु के मंगल की कामना करते रहते थे ।
प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2017 |
661 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए आप जो किसी को दण्ड देते हैं, वह उसके पापों का प्रायश्चित करने और उसका परम कल्याण करने के लिए ही है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नागपत्नियों ने प्रभु से कहे ।
प्रभु ने देखा कि बृजवासी प्रभु की खोज करते हुए श्री यमुनाजी के तट पर पहुँच गए और प्रभु को कालिया के बंधन में देखकर वे प्रेम के कारण मूर्छित हो गए । तो प्रभु ने अपने शरीर को फुलाया और कालिया का शरीर टूटने लगा । प्रभु बंधन से बाहर निकल आए और कालिया के सिर पर नृत्य करने लगे । कालिया के एक सौ एक सिर थे और वह जिस सिर को नहीं झुकाता प्रभु अपने श्रीकमलचरणों की चोट से उसी पर प्रहार करते । प्रभु के प्रहार से कालिया की जीवनशक्ति क्षीण हो गई और उसका एक-एक अंग पीड़ा से चूर-चूर हो गया । तब अपने बालकों को आगे करके नागपत्नियां प्रभु को प्रणाम कर अपने पति की रक्षा के लिए प्रभु की शरण में आई । उन्होंने प्रभु से कहा कि आप पापियों को पापों के प्रायश्चित के लिए और उनके परम कल्याण के लिए ही उन्हें दण्ड देते हैं । प्रभु के दण्ड देने से पापियों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।
प्रभु के दण्ड देने की प्रक्रिया में भी जीव का परम हित और परम कल्याण ही छिपा हुआ होता है ।
प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2017 |
662 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 36 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! हम नहीं समझ पाती कि यह इसकी किस साधना का फल है, जो यह आपके चरणकमलों की धूल का स्पर्श पाने का अधिकारी हुआ है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नागपत्नियों ने प्रभु से कहे ।
जब प्रभु ने कालिया पर कृपा की और उसके एक सौ एक सिर पर प्रभु ने बारी-बारी से अपने श्रीकमलचरणों से प्रहार किया तो यह देख नागपत्नियों ने अपने पति के भाग्य की प्रशंसा की । वे कहती हैं कि यह कालिया की किस साधना का फल है जिसने उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्पर्श पाने का अधिकारी बनाया । प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज ही इतनी दुर्लभ है कि भक्तजन उसके बदले स्वर्ग का राज्य, पृथ्वी की बादशाही, रसातल का राज्य, प्रभु श्री ब्रह्माजी का पद, सिद्धियां और मोक्ष तक को अस्वीकार कर देते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज इतनी दुर्लभ है तो प्रभु के उन श्रीकमलचरणों का अपने मस्तक पर निरंतर स्पर्श पाना कालिया का कितना बड़ा भाग्य होगा ।
प्रभु के श्रीकमलचरणों की महिमा अपार है इसलिए भक्तजन भक्ति के द्वारा अपने मन को प्रभु के श्रीकमलचरणों में लगाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2017 |
663 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 53 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि जो श्रद्धा के साथ आपकी आज्ञाओं का पालन, आपकी सेवा करता है, वह सब प्रकार के भयों से छुटकारा पा जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नागपत्नियों ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
नागपत्नियां कहतीं हैं कि प्रभु स्वामी हैं और अपनी प्रजा के अपराध को सह लेते हैं । उन्होंने कहा कि हमारा पति कालिया नाग मूढ़ है और प्रभु को पहचान नहीं पाया इसलिए क्षमा का पात्र है । नागपत्नियों ने कहा कि यह कालिया अब प्रभु के प्रहार से मरने वाला ही है इसलिए हम अनाथ हो जाएंगी । इसलिए हम अनाथों पर प्रभु दया कीजिए और हमारे पति को प्राण दण्ड नहीं दीजिए । उन्होंने प्रभु से कहा कि हम सब आपके दास है इसलिए हमें आज्ञा दीजिए कि हम आपकी क्या सेवा करें । सूत्र यह है कि जो श्रद्धा के साथ प्रभु की आज्ञाओं का पालन करता है और प्रभु की सेवा करता है, प्रभु उसे सभी प्रकार के भयों से छुटकारा प्रदान कर देते हैं ।
इसलिए जीव को तन्मय होकर प्रभु की सेवा करनी चाहिए जिससे उसके जीवन में से सदा के लिए भय निकल जाए ।
प्रकाशन तिथि : 22 फरवरी 2017 |
664 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 16
श्लो 63 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
मैं जानता हूँ कि तू गरुड़ के भय से रमणक द्वीप छोड़कर इस देह में आ बसा था । अब तेरा शरीर मेरे चरणचिह्नों से अंकित हो गया है । इसलिए जा, अब गरुड़ तुझे खाएंगे नहीं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु के श्रीकमलचरणों के चरणचिह्न का कितना बड़ा महत्व है यह यहाँ देखने को मिलता है ।
कथा है कि प्रभु श्री विष्णुजी के वाहन श्री गरुड़जी का भोजन सर्प थे इसलिए रमणक द्वीप में सर्पों ने ऐसा नियम बनाया था कि प्रत्येक अमावस्या को सर्प परिवार बारी-बारी से श्री गरुड़जी को एक सर्प की बलि दिया करते थे । कालिया नाग अपने बल के कारण घमंडी था और उसने बलि देने से मना कर दिया । तब श्री गरुड़जी ने बड़े वेग से उस पर आक्रमण किया और कालिया नाग पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया । तब श्री गरुड़जी के बल से डर कर कालिया नाग घबराकर भागा और श्री यमुनाजी में आकर छिप गया । अब प्रभु ने उस पर दया की और प्रभु के श्रीकमलचरणों के चरणचिह्न उसके मस्तक पर अंकित हो गए इसलिए अब श्री गरुड़जी के लिए भी कालिया वंदनीय हो गया ।
प्रभु का दया पात्र बनने के कारण अब वह स्वतः ही श्री गरुड़जी का भी दया पात्र बन गया ।
प्रकाशन तिथि : 22 फरवरी 2017 |
665 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 17
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... पर्वत, वृक्ष, गाय, बैल, बछड़े, सब-के-सब आनंदमग्न हो गए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु से सभी कितना अदभुत प्रेम करते थे यह यहाँ देखने को मिलता है ।
जब कालिया पर प्रभु ने कृपा की और उसे क्षमा करके निर्भय किया तो उसने प्रभु का पूजन किया । इसके बाद बड़े प्रेम से और आनंद से उसने प्रभु की परिक्रमा की, वंदना की और अनुमति लेकर श्री यमुनाजी को छोड़कर चला गया । प्रभु जब श्री यमुनाजी से बाहर निकले तो सभी बृजवासी जो कि मूर्छित थे वे उठ खड़े हुए जैसे उनकी इंद्रियों में प्राणों का संचार हुआ हो । सभी गोप गोपियों का हृदय आनंद से भर गया । वे प्रभु को बड़े प्रेम से अपने हृदय से लगाने लगे । भगवती यशोदा माता की आँखों से आनंद के आंसुओं की बूंदे बार-बार टपकती जा रही थी । सबका मनोरथ सफल हुआ ऐसा मान कर सभी प्रफुल्लित हुए । यहाँ तक कि पर्वत, वृक्ष, गाय, बैल और बछड़े सभी आनंदमग्न हो गए ।
इस दृष्टांत से सीखने योग्य बात यह है कि जीव को प्रभु से कितना अपार प्रेम करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2017 |
666 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 17
श्लो 24 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... प्रभो ! हम मृत्यु से नहीं डरते, परंतु तुम्हारे अकुतोभय चरणकमल छोड़ने में हम असमर्थ हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन बृजवासियों ने प्रभु से कहे ।
कालिया से श्री यमुनाजी को मुक्त कराकर जब प्रभु वापस लौटे तो संध्या हो चुकी थी इसलिए थके हुए बृजवासी श्रीबृज नहीं गए और श्री यमुनाजी के तट पर ही सो गए । गर्मी का समय था, वन सूखा था इसलिए वन में आग लग गई और अग्नि ने बृजवासियों को घेर लिया । बृजवासी घबरा कर उठे और प्रभु की शरण में गए । उन्होंने जो प्रभु से विनती की वह ध्यान देने योग्य है । उन्होंने प्रभु से कहा कि उन्हें मृत्यु का डर नहीं परंतु प्रभु के श्रीकमलचरणों के सानिध्य को छोड़ पाने में वे असमर्थ हैं । मृत्यु हो जाने पर उन्हें प्रभु के श्रीकमलचरणों से दूर होना पड़ेगा इसलिए उन्होंने प्रभु से विनती की कि आग से उन्हें बचाएं जिससे प्रभु के श्रीकमलचरणों का सानिध्य उन्हें नित्य मिलता रहे ।
भक्त निरंतर प्रभु का सानिध्य चाहता है और प्रभु से वियोग को नहीं सह सकता ।
प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2017 |
667 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 19
श्लो 10 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तुम्हीं हमारे एकमात्र रक्षक और स्वामी हो, हमें केवल तुम्हारा ही भरोसा है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ग्वाल बालकों ने प्रभु से कहे ।
जब वन में दावाग्नि लग गई और जोर से आंधी चलकर उस अग्नि को बढ़ाने में सहायता देने लगी तो ग्वाल बालक प्रभु की शरण में गए । शरणागत होकर उन्होंने प्रभु को पुकारा और कहा कि जिसके भाई-बंधु और सब कुछ प्रभु हैं उन्हें कभी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु ही उनके एकमात्र रक्षक हैं और प्रभु ही उनके एकमात्र स्वामी हैं । उनको केवल और केवल प्रभु का ही भरोसा है । उनके दीन वचन सुनकर प्रभु ने उनकी रक्षा की और भयंकर आग को अपने श्रीमुँह से पी लिया । पूर्व में प्रभु ने रात्रि में अग्निपान किया था और इस बार दिन में अग्निपान किया । इससे यह पता चलता है कि प्रभु अपने भक्तजनों की रक्षा के लिए दिन हो या रात सदा तत्पर रहते हैं ।
हमें भी विपत्ति में सिर्फ और सिर्फ प्रभु की ही शरणागति ग्रहण करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2017 |
668 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 19
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इधर बृज में गोपियों को श्रीकृष्ण के बिना एक-एक क्षण सौ-सौ युगों के समान हो रहा था । जब भगवान श्रीकृष्ण लौटे तब उनका दर्शन करके वे परमानंद में मग्न हो गई ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - गोपियों के जीवन धन प्रभु ही थे । प्रभु दर्शन बिना उनके लिए समय व्यतीत करना बहुत मुश्किल होता था ।
सुबह जब प्रभु गौचारण के लिए जाते थे तो गोपियां उनका दर्शन करतीं थीं । फिर पूरे दिन उन्हें प्रभु का इंतजार रहता था कि कब प्रभु वापस आएंगे और उनका दर्शन वापस हो सकेगा । प्रभु जब गौ-माताओं को लेकर लौटते तो गोपियां आनंदित हो जातीं । क्योंकि प्रभु के बिना एक-एक क्षण उनके लिए सौ-सौ युगों के समान होता था । प्रभु से विरह वे सहन नहीं कर पातीं थीं और प्रभु से मिलने के लिए तड़पती रहतीं थीं । प्रभु जब लौटते तो उनका दर्शन करके गोपियां परमानंद में मग्न हो जातीं ।
प्रभु से कितना प्रेम किया जाए इसकी आचार्या गोपियां हैं और यह गोपियों से सीखने योग्य बात है ।
प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2017 |
669 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 20
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
मूसलाधार वर्षा की चोट खाते रहने पर भी पर्वतों को कोई व्यथा नहीं होती थी, जैसे दुःखों की भरमार होने पर भी उन पुरुषों को किसी प्रकार की व्यथा नहीं होती, जिन्होंने अपना चित्त भगवान को ही समर्पित कर रखा है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
तेज वर्षा की चोट खाने पर भी जैसे पर्वतों को कोई व्यथा नहीं होती, वैसे ही दुःखों से भरे इस संसार में भक्तों को कोई व्यथा नहीं होती । क्योंकि उन्होंने अपना चित्त भगवान को समर्पित कर रखा है । सिद्धांत यह है कि जब हम प्रभु को समर्पित हो जाते हैं तो संसार के दुःख हम पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते । संसार हमें तब तक ही व्यथा पहुँचाता है जब तक हम प्रभु को समर्पित नहीं होते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह अपना जीवन भक्ति के द्वारा प्रभु को समर्पित करे जिससे कि वह संसार के दुःखों और कष्टों की व्यथा से वह बचा रहे ।
प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2017 |
670 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 20
श्लो 34 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जैसे भगवान की भक्ति ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासियों के सब प्रकार के कष्टों और अशुभों का झटपट नाश कर देती है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु की भक्ति जीव की सभी अवस्था में सभी प्रकार के कष्टों और अशुभों का नाश कर देती है । प्रभु की भक्ति का इतना बड़ा सामर्थ्य है कि हमें दुःख और कष्टों से रहित कर देती है । जो भी कर्म के अनुसार अशुभ फल हमारे जीवन में होते हैं, प्रभु की भक्ति उसका नाश कर देती है । भक्ति से बढ़कर कष्टों को मिटाने का और अशुभों को नष्ट करने का अन्य कोई साधन नहीं । भक्ति हमें प्रभु का सानिध्य और प्रभु की कृपादृष्टि प्रदान कराती है और ऐसा होते ही हमारे कष्ट मिट जाते हैं और अशुभ फल नष्ट हो जाते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि जीवन में भक्ति का आलंबन ले जिससे उसे कष्ट, दुःख और अशुभ फल से मुक्ति मिल सके ।
प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2017 |
671 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 04 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनका मन हाथ से निकल गया । वे मन-ही-मन वहाँ पहुँच गई जहाँ श्रीकृष्ण थे । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु जब ग्वाल बालकों के साथ गौचारण के लिए वन में प्रवेश करते तो बांसुरी पर मधुर तान छेड़ देते । यह बांसुरी की ध्वनि गोपियों के हृदय में प्रभु के प्रति प्रेम भाव जगाने वाली एवं प्रभु से मिलन की इच्छा को जगाने वाली होती थी । बांसुरी की ध्वनि को सुनकर गोपियों का हृदय प्रेम से परिपूर्ण हो जाता । गोपियों का मन उनके वश में नहीं रहता । गोपियां मन-ही-मन वहाँ पहुँच जाती जहाँ प्रभु बांसुरी बजा रहे होते । प्रभु का बांसुरी वादन गोपियों को प्रेममग्न कर देता । बांसुरी की ध्वनि सुनकर गोपियों को प्रभु की याद आती और प्रभु मिलन की लालसा और बढ़ जाती ।
प्रभु अपने प्रेमी भक्तों को कैसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2017 |
672 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 09 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अरी गोपियों ! यह वेणु पुरुष जाति का होने पर भी पूर्व जन्म में न जाने ऐसा कौन-सा साधन-भजन कर चुका है कि हम गोपियों की अपनी संपत्ति, दामोदर के अधरों की सुधा स्वयं ही इस प्रकार पिए जा रहा है कि हम लोगों के लिए थोड़ा-सा भी रस शेष नहीं रहेगा । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोपियों ने आपस में बातचीत करते हुए एक दूसरे को कहे ।
गोपियां बांसुरी के भाग्य की प्रशंसा करती हैं कि उसने कौन-सा पूर्व जन्म का पुण्य किया है अथवा पूर्व जन्म में कौन-सा साधन और भजन किया है कि प्रभु के श्रीहोठों से चिपकी रहती है । बांसुरी प्रभु के श्रीहोठों की सुधा को स्वयं इस प्रकार पिए जा रही है कि अन्य किसी के लिए यह रस शेष बचने नहीं देगी । जिस वृक्ष से यह बांसुरी बनी है वे वृक्ष भी अपने वंश में भगवत् प्रेमी संतान को देखकर आनंद के आंसू बहा रहे हैं और अपने भाग्य पर गौरवान्वित हो रहे हैं ।
जो प्रभु से जुड़ जाता है उसका परिवार और उसकी पीढ़ियां तर जाती हैं ।
प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2017 |