लेख सार : प्रभु प्राप्ति के अलावा हम मनुष्य जन्म में आकर सब कुछ कर लेते हैं और जिस उद्देश्य से हमें मनुष्य जन्म मिला है उससे हम चूक जाते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
हमें मनुष्य जन्म मिलने से पहले चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है । इन योनियों में हमें जलचर, थलचर, नभचर और वनस्पति बनना पड़ता है । यानी हमें जल में रहने वाले जीव, जमीन पर चलने वाले जीव, आकाश में उड़ने वाले जीव और वृक्ष, लता और पौधे बनना पड़ता है ।
हमें बीस लाख योनियां वृक्षों की, नौ लाख योनियां जलचर की, ग्यारह लाख योनियां कीड़े-मकोड़ों की, दस लाख योनियां पक्षियों की और चौंतीस लाख योनियां पशुओं की यानी कुल मिलाकर चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है । इस प्रकार इन चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद प्रभु कृपा करके अति दुर्लभ मनुष्य जन्म हमें देते हैं ।
इस तरह भटकते-भटकते एक बहुत लंबा समय बीत जाता है । इन सभी चौरासी लाख योनियों में भटकने में चार करोड़ पचास लाख वर्ष लगते हैं । इस प्रकार औसत एक योनि में 5.35 वर्ष का समय आता है । ऐसा इसलिए क्योंकि कीड़े मकोड़ों की कुछ योनियों में जीवन मात्र एक दिन का होता है जबकि वृक्षों का जीवन कई सौ वर्षों का होता है ।
इस तरह चार करोड़ पचास लाख वर्षों की प्रतीक्षा के बाद प्रभु कृपा से अति दुर्लभ मनुष्य जीवन मिलता है । ऐसा दुर्लभ जीवन मिलने पर अगर हम उसे खाने-पीने, भोग भोगने, निद्रा, मैथुन, परिवार पालने, व्यापार करने और दुनियादारी करने में ही व्यर्थ कर देते हैं तो हमें उस दुर्लभ जीवन के मुख्य उद्देश्य प्रभु प्राप्ति से वंचित रहना पड़ता है । फिर हमें चार करोड़ पचास लाख वर्षों का चक्कर लगाना पड़ता है एवं दुबारा मनुष्य जीवन मिलने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है ।
प्रभु प्राप्ति के लिए केवल मनुष्य योनि ही है बाकी सभी योनियां भोग योनियां है जिसमें प्रभु प्राप्ति संभव नहीं । शास्त्रों, संतों और भक्तों ने इसलिए मनुष्य जन्म को व्यर्थ बर्बाद करने से बचने के लिए हमें चेतावनी दी है । पर हम माया के चक्कर में पड़कर उस चेतावनी को अनसुनी कर देते हैं । हमारा कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रभु प्राप्ति के लक्ष्य की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता ।
इसलिए समझदारी इसी में है कि मनुष्य जीवन प्रभु की भक्ति में लगाया जाए और मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्रभु प्राप्ति को ही बनाया जाए । हमें अपने मन को दृढ़ता से समझाना चाहिए कि मनुष्य जीवन पाकर प्रभु प्राप्ति से कम हमें कुछ भी स्वीकार नहीं होना चाहिए । हमें मन को समझाना चाहिए कि हमें इसी जन्म में प्रभु प्राप्ति करके प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना स्थान बनाना है ।
अगर इसी जन्म में भक्ति करके हम प्रभु की प्राप्ति करके संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं तो फिर चौरासी लाख योनियों में जन्म और चार करोड़ पचास लाख वर्षों के श्रम से हम सदैव लिए बच जाएंगे । अगर हम ऐसा नहीं कर पाते तो एक बार नहीं बार-बार चौरासी लाख योनियों में भ्रमण और चार करोड़ पचास लाख वर्षों की प्रतीक्षा करते रहनी पड़ेगी ।
इसलिए मनुष्य जीवन में प्रभु की भक्ति कर प्रभु प्राप्ति करना ही श्रेष्ठ है । वैसे भी हमें मनुष्य जीवन प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला हुआ है । इसलिए हमें अपना लक्ष्य नहीं चूकना चाहिए और मनुष्य जीवन में प्रभु प्राप्ति ही करनी चाहिए ।