लेख सार : प्रभु एक ही हैं और हम सभी उन एक प्रभु की ही संतानें हैं पर धर्म और पंथ के बंटवारे के कारण हमारा आपसी मतभेद कितना बढ़ गया है जिसे देखकर प्रभु को भी दुःख होता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
सभी धर्मशास्त्र एकमत हैं कि पूरे ब्रह्मांड में केवल एक ही प्रभु की सत्ता है । धर्म चाहे कितने भी हो सकते हैं, उन धर्मों के अंतर्गत पंथ चाहे कितने भी हो सकते हैं पर प्रभु की सत्ता एक ही है । एक ही प्रभु के विभिन्न धर्मों और पंथों के अनुसार अनेक रूप हैं । सभी धर्मों और पंथों की आराधना की विधि अलग-अलग है पर वह सभी आराधना एक ही प्रभु तक पहुँचती है ।
पर मनुष्य का दुर्भाग्य देखिए कि एक ही प्रभु होने पर भी और उनके अनुयायी होने पर भी आपस में मतभेद रखते हैं, लड़ते हैं । अपने प्रभु, अपने धर्म और अपने पंथ को ऊँचा दिखाने में और दूसरे के प्रभु, दूसरे के धर्म और दूसरे के पंथ को अपने से नीचा दिखाने से नहीं चूकते ।
हमें समझना चाहिए कि प्रभु को यह देखकर आश्चर्य होता होगा कि मेरे नाम पर मेरी ही संतानें आपस में कितना मतभेद रखती हैं, कितना लड़ती हैं । एक बात तथ्य के रूप में देखने पर हमें अपनी मूर्खता समझ में आएगी ।
भगवान को अपने विभिन्न रूप में कभी भी, कहीं भी, किसी भी धर्मशास्त्र के अंतर्गत किसी ने भी लड़ते-झगड़ते नहीं देखा होगा, न पाया होगा और न ही सुना होगा । किसी भी ऋषि, संत, मौलवी, पीर को ऐसा अनुभव कहीं भी कभी भी नहीं हुआ होगा पर विभिन्न धर्म वाले प्रभु के नाम पर मूर्खतावश लड़ते आए हैं ।
हमें परब्रह्म को एक स्वरूप मानना चाहिए जिसके सहस्त्रों रूप हैं । पर जीव का दुर्भाग्य देखें और उसकी भ्रमित बुद्धि देखें कि वह प्रभु के विभिन्न रूपों को लेकर झगड़ता है ।
पर जिस पर प्रभु की कृपा होती है और भक्ति से ज्ञान हो जाता है वह प्रभु के विभिन्न रूपों को देखने की कला सीख जाता है । वह अपने प्रभु के सभी रूपों को समदृष्टि से देखता है और उसकी भेद बुद्धि सदा के लिए समाप्त हो जाती है ।
फिर उसे हर धर्म, हर पंथ के लिए सम्मान हो जाता है । वह मानता है कि सबकी पहुँच एक ही परब्रह्म तक है । एक ही परब्रह्म के अलग-अलग रूपों की अलग-अलग आराधना पद्धति से वंदना की जाती है । उसे धर्मों में भेद नहीं अपितु सामंजस्य दिखने लग जाता है ।
सभी धर्मों में एक परब्रह्म की आराधना, स्तुति का विधान है । तरीका सबका अलग-अलग हो सकता है । इससे क्या फर्क पड़ता है कि चाहे कोई किसी भी पद्धति से प्रभु तक पहुँचे पर पहुँच सबकी एक ही प्रभु तक है ।
अगर प्रभु कृपा से हमें ऐसी दृष्टि मिल जाती है कि हमें हर रूप में एक ही प्रभु दिखने लगते हैं तो हर धर्म, हर पंथ के मतभेद समाप्त हो जाते हैं । फिर एक ऐसा भाईचारा स्थापित होता है जिसे देखकर परमपिता प्रभु भी प्रसन्न होते हैं ।
इसलिए एक प्रभु के नाम पर झगड़ने या अपने धर्म और पंथ की श्रेष्ठता स्थापित करने की मूर्खता हमें छोड़नी चाहिए । प्रभु के हर स्वरूप को नमन करना चाहिए और हर धर्म, हर पंथ का सम्मान करना चाहिए तभी प्रभु को अपनी संतानों को देखकर प्रसन्नता होगी ।