लेख सार : हमारा पूरा जीवन प्रभु कृपा से भरा हुआ है पर हमें प्रभु कृपा देखने की कला ही नहीं आती इसलिए हम प्रभु की कृपा अपने जीवन के हर प्रसंग जीवन में नहीं देख पाते । अगर हम प्रभु की कृपा देखने की कला सीख लेते हैं तो हमारा हृदय सदैव प्रभु के लिए आभार और कृतज्ञता से भरा रहेगा एवं प्रभु की और अधिक कृपा हमारे जीवन में फलित होगी । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
भक्ति का सबसे बड़ा लक्षण यह है कि प्रभु की कृपा आपको हर क्षेत्र में, हर कार्य में दृष्टिगोचर होने लगेगी । भक्ति के जीवन में आते ही सर्वत्र प्रभु कृपा के दर्शन होने लगते हैं । जीवन में जब तक भक्ति नहीं होगी हमें प्रभु कृपा के दर्शन नहीं होंगे । एक भक्त की आँखें जहाँ भी देखती है उसे प्रभु कृपा ही नजर आती है ।
भक्तों ने अपने जीवन में सदैव प्रभु कृपा का ही अनुभव किया है । जीवन के हर प्रसंग में उन्होंने प्रभु कृपा को ढूंढ निकाला है । जीवन जीने का यही सही दृष्टिकोण है कि हर प्रसंग में हमें प्रभु कृपा के दर्शन होने लगे ।
एक सिद्धांत है कि जितना-जितना प्रभु कृपा के दर्शन करना हम सीखेंगे उतना-उतना हमारे जीवन में प्रभु कृपा बढ़ती ही चली जाएगी । इसलिए सभी भक्तों के जीवन चरित्र में हमें भरपूर प्रभु कृपा देखने को मिलती है । भगवती मीराबाई इसका जीवंत उदाहरण हैं । उनका पूरा जीवन ही प्रभु कृपा से भरा हुआ है । उन्हें मारने के लिए विष भेजा गया पर वह अमृत बन गया । उन्हें जहरीले कांटों के बिस्तर पर सुलाया गया पर वे जहरीले कांटे फूल की पंखुड़ी बन गए । उन्हें काटने के लिए सर्प भेजा गया पर वे प्रभु श्री शालिग्रामजी बन गए । दूसरा जीवंत उदाहरण भक्त श्री प्रह्लादजी का है । उन्हें पर्वत से नीचे फेंका गया पर प्रभु ने उन्हें नीचे गिरने पर अपनी दिव्य बाहों में भरकर थाम लिया । उन्हें अग्नि में जलाया गया पर अग्नि उनके लिए शीतल बन गई और जलाने वाली होलिका जल गई । उन्हें हाथी से मरवाना चाहा पर हाथी ने मारने की जगह उन्हें प्रणाम किया ।
पुराने इतिहास के दो दृष्टांत देखने के बाद वर्तमान के तीन दृष्टांत देखें । पहला दृष्टांत एक अमीर व्यक्ति का लें । वह अमीर है तो प्रभु कृपा के कारण ही है क्योंकि अगर मेहनत से ही अमीर हुआ जाता तो एक ठेला चलाने वाला, रिक्शा चलाने वाला सबसे अधिक मेहनत करता है लिहाजा सबसे अमीर होना चाहिए । दूसरा दृष्टांत एक पति-पत्नी के प्रेम का लें । पति-पत्नी का प्रेम प्रभु कृपा के बल पर ही होता है क्योंकि अगर प्रभु कृपा चली जाए तो वह रिश्ता एक दूसरे के लिए बड़ा भयानक और कष्टदायक हो सकता है । प्रभु कृपा जाते ही पति-पत्नी के बीच का क्लेश भरा रिश्ता तत्काल सामने आ जाएगा । तीसरा दृष्टांत एक विद्वान छात्र का लें जिसे विद्या रूप में प्रभु कृपा मिली है । एक साधारण छात्र मेहनत करके कुछ नहीं कर पाता और असफल होता है और विद्यावान छात्र उतनी ही मेहनत में ऊँचाइयों को छू लेता है ।
वर्तमान के तीनों उदाहरणों में - सेठजी की अमीरी, पति-पत्नी का प्रेम और छात्र का विद्यावान होने में प्रभु की कृपा ही कार्य करती है । इस सिद्धांत को मानना ही भक्तियोग है और इस सिद्धांत को मानने पर हर क्षेत्र में हमें प्रभु कृपा के सर्वदा दर्शन होने लगेंगे ।
प्रभु कृपा को जीवन में स्वीकारने पर और अधिक प्रभु कृपा जीवन में फलित होगी । इसलिए जीवन के हर प्रसंग में प्रभु कृपा को ढूंढ निकालना चाहिए । जो ऐसा करना सीख जाता है उसके जीवन में प्रभु कृपा बढ़ती ही चली जाती है । भक्ति हमें प्रभु कृपा को जीवन में सर्वत्र देखने की ही कला सिखाती है । इसलिए जीवन में अविलम्ब भक्ति को लाना चाहिए जिससे हमें प्रभु कृपा देखने वाले नेत्र मिल जाए और हमें सर्वत्र प्रभु कृपा के दर्शन होने लगे ।